Udsalget slutter om
Udvidet returret til d. 31. januar 2025

Bøger af T. C. Koul

Filter
Filter
Sorter efterSorter Populære
  • af T. C. Koul
    232,95 kr.

    प्रस्तुत पुस्तक मुख्यतः गजलों का एक संग्रह है जिसमें लगभग 70 ग़ज़लें हैं। पुस्तक की अनूठी विशेषता यह है कि इसमें ग़ज़ल संग्रह के साथ, ग़ज़ल की साहित्यिक और सांगीतिक उत्पत्ति कैसे हुई तथा ग़ज़ल साहित्य के निर्धारित मापदंड क्या हैं, इन सभी विषयों का वर्णन भी किया गया है। एक ही पुस्तक में यह सब जानकारी पाठकों के लिए एक नवीन विषय है।

  • af T. C. Koul
    244,95 kr.

    ग़ज़ल का अभिप्राय फ़ारसी अथवा उर्दू कविता के उस प्रकार से है जिसमें प्रेम क्रिया-व्यापारी का समावेष रहता है। वस्तुतः यह षब्द अरबी भाशा का है और अरबी साहित्य की अनुकृति पर ही यह विधा फ़ारसी भाशा में समाविश्ट हुई और उसके पष्चात् उर्दू भाशा के अस्तित्व में आने पर भारत में भी विकसित हुई। ग़ज़ल की उत्पति के विशय में विद्वानों का कहना है कि प्राचीन अरब में अमीर-उमराव, बादषाहों, लब्ध प्रतिश्ठ लोक नायकों एवं सामाजिक, धार्मिक एवं षासकीय क्षेत्रों में लब्ध प्रतिश्ठ लोगों की प्रषस्ति में कसीदा नाम का काव्य रूप व्यवहत होता था। यह दीर्घ कविता होती थी और इसके आरम्भ में कुछ पंक्तियां मुख्य विशय से किंचित अलग, प्रिय के सौन्दर्य, नाक-नक्ष, हाव-भाव, प्रेम-व्यापार आदि निरूपति करती थी जो उस कसीदा की भूमिका के रूप में होती थी। ये रचनाएं भावों की रंगीनी के कारण अत्यन्त लोकप्रिय होती थी। कालान्तर में यही प्रणय-गर्भित भूमिका एक स्वतंत्र काव्य के रूप में विकसित हुई और अरबी की अपेक्षा फ़ारसी काव्य की एक विषेश विधा बन गई। और बाद में ग़ज़ल भी इसी विधा का विकसित रूप समझी जानें लगी।

Gør som tusindvis af andre bogelskere

Tilmeld dig nyhedsbrevet og få gode tilbud og inspiration til din næste læsning.