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  • af &#2358, &#2381, &#2366, mfl.
    142,95 kr.

    han han, main mar chuka hun . main sabke liye ek lash ke siva kuchh nahi . meri arthi jite-ji nikal di gai . mere armanon ki arthi, mere khvabon ki arthi --- . aj meri lash par rone ayen hain ap log . nahi -- nahi . meri lash par koi ro nahi sakta . meri hatya karne men ap sabhi ka hath hai . sabne meri bhavnaon ke sath khela hai -- meri bhavnaon ka gala ghonta hai . nahi bete, nahi . aisa mat kaho, kabhi-kabhi bete ko bhi ma-bap ko maf kar dena chahiye .'' kahte hue ramankishor saurabh ke panv men jhukte chale gaye . ek aise insan ki kahani jinki bhavnaon ka gala unke apnon ne hin ghont dala . vah jo unke liye hi ji raha tha, pae ve use galat samajh rahe the . akhir kyon ? janne ke liye padhe ---- upanyas -- mrityu

  • af &#2358, &#2381, &#2366, mfl.
    134,95 kr.

    मृत्यु उस सय का नाम है जिससे प्रत्येक व्यक्ति भयभीत होता है । मृत्यु हमें आस्तिक बनाती है । मृत्यु एक दुर्लभ वस्तु है । मृत्यु में आपको इतिहास-पुरुष बना जाने की कला है । मृत्यु अवश्यंभावी है । मृत्यु मिलापक होती है । मृत्यु को भूलना नहीं चाहिए । मृत्यु अभिशाप नहीं, वरदान है । मृत्यु का भी उद्देश्य होना चाहिए । जीवन और मृत्यु एक दूसरे के पूरक हैं । जीवन-धारा बदलें, मृत्यु हमेशा याद रहेगी । मृत्यु पूर्वकालिक घोषणा नहीं करें ।

  • af &#2366, &#2346, &#2352, mfl.
    216,95 kr.

    क्या हमारा सारा जीवन ही इस वो तो नहीं की संभावना से प्रेरित हुआ नहीं लगता! मन की अनिश्चित, असंगत, अकसर टेड़ी, उलझन मे डालने वाली चालो और उड़ानों पर भटकती होती है जिंदगी। 'है या नहीं 'के दो पाटो के बीच पीसते रहने को विवश। अक्सर वो तो नहीं की छांव मे थोड़ा शुकुन पाती हुई! पर अगर मगर के चक्कर सब कुछ गडमड सा लगता हुआ। कही वो तो नहीं, कहीं ये तो नहीं! इन दो धुरियों मे घुमता ही रहता है। जीवन चक्र! कैसा संयोग! कैसे रंग है जीवन के! जब जीना चाहा, जब प्यार चाहा, मिला नहीं। जिसके लिए सब कुछ छोड़ कर उसका होना चाहा, वो भी नहीं हो पाया। । जिसे भी चाहा मिला नहीं। और जब प्यार और खुशियाँ मिली भी तो अब! जब जीवन ही दांव पर लगा है। ऐसा लगता हुआ कि सब कुछ खत्म होने वाला है। आज एकाएक उसी जीवन से मोह सा हो गया! जब मृत्यु पास आती दिखी अभी तो जिंदगी जी ही नहीं है! बहुत कुछ करना, देखना है और जीते जाना है....जब सब ओर मौत और विनाश का तांडव हो रहा होता। जब ऐसे बुरे फंसे हैं, चारो तरफ पानी। बाढ़ का पानी, बादल फटने की जल राशि मे जीवन अंत होना करीब तय सा लगता हुआ। तब जीने की इच्छा बढ़ती जाती। जैसे जीने की बढ़ती इच्छा और आसन्न मृत्यु के बीच कोई गहरा संबंध हो!

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