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धुंधली परछाई (Dhundhali parchayi)

Bag om धुंधली परछाई (Dhundhali parchayi)

जगत जननी नारी को भगवान भी सिर झुकाता है, हे ! इंसान तूं क्यूं नहीं नारी को पहचानता है।"" नारी को इस जगत की जननी माना गया है। युगों युगों से हम नारी की महिमा सुनते आए हैं, फिर चाहे वह मां काली का रूप हो या माता सीता का। इतिहास ग्वाह है कि जब जब नर पर कष्ट बढ़ा नारी ने अपना सौम्य रूप धारण कर सबका उद्धार किया। मैंने अपनी इस पुस्तक को धुंधली परछाई का नाम दिया है। मैं ये मानती हूं कि नारी एक धुंधली परछाई के रूप में अपना योगदान हमेशा से देती आई है तथा आज भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही है। इस पुस्तक में ऐसी ही कई कहानियां अवतरित की गई हैं, जो नारी की महता पर प्रकाश डालती हैं। आशा करती हूं कि आप सब भी कहानियां पढ़ने के बाद पुस्तक के शीर्षक को भली भांति समझ पाओगे।

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  • Sprog:
  • Hindi
  • ISBN:
  • 9789356671201
  • Indbinding:
  • Paperback
  • Udgivet:
  • 13. december 2022
  • Størrelse:
  • 127x203x5 mm.
  • Vægt:
  • 100 g.
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Beskrivelse af धुंधली परछाई (Dhundhali parchayi)

जगत जननी नारी को भगवान भी सिर झुकाता है, हे ! इंसान तूं क्यूं नहीं नारी को पहचानता है।"" नारी को इस जगत की जननी माना गया है। युगों युगों से हम नारी की महिमा सुनते आए हैं, फिर चाहे वह मां काली का रूप हो या माता सीता का। इतिहास ग्वाह है कि जब जब नर पर कष्ट बढ़ा नारी ने अपना सौम्य रूप धारण कर सबका उद्धार किया। मैंने अपनी इस पुस्तक को धुंधली परछाई का नाम दिया है। मैं ये मानती हूं कि नारी एक धुंधली परछाई के रूप में अपना योगदान हमेशा से देती आई है तथा आज भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही है। इस पुस्तक में ऐसी ही कई कहानियां अवतरित की गई हैं, जो नारी की महता पर प्रकाश डालती हैं। आशा करती हूं कि आप सब भी कहानियां पढ़ने के बाद पुस्तक के शीर्षक को भली भांति समझ पाओगे।

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