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Bøger af Meenu Poonia

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  • af Meenu Poonia
    110,95 kr.

    हर परिस्थिति पर कविता लिखने की चाह में जब कभी भी समय मिलता है तो कागज और पैन उठाकर लिखना शुरू कर देती हूं। इसी श्रंखला में मेरी ये किताब तैयार होकर आपके समक्ष प्रस्तुत है। सेवानिवृत व्यक्ति और कर्मचारी में अरे कुछ तो पहचान अलग दिखाएं, मात्र नौकरी से ही तो रिटायर हुए हो सुनहरा बुढ़ापा भी तो अभी बकाया है मत बनो जीते जी सेवानिवृत व्यक्ति जिंदगी का कर्ज अभी चुकाया कहां है। ये चंद पंक्तियां मेरे दफ़्तर के एक किस्से पर लिखी गई कविता से ली गई हैं, जिसमें मैंने अनायास ही घटी एक घटना के बारे में लिखा है। इसी पुस्तक में अवतरित कविता को पढ़कर आप आशय से परिचित हो पाओगे।

  • af Meenu Poonia
    133,95 kr.

    जगत जननी नारी को भगवान भी सिर झुकाता है, हे ! इंसान तूं क्यूं नहीं नारी को पहचानता है।"" नारी को इस जगत की जननी माना गया है। युगों युगों से हम नारी की महिमा सुनते आए हैं, फिर चाहे वह मां काली का रूप हो या माता सीता का। इतिहास ग्वाह है कि जब जब नर पर कष्ट बढ़ा नारी ने अपना सौम्य रूप धारण कर सबका उद्धार किया। मैंने अपनी इस पुस्तक को धुंधली परछाई का नाम दिया है। मैं ये मानती हूं कि नारी एक धुंधली परछाई के रूप में अपना योगदान हमेशा से देती आई है तथा आज भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही है। इस पुस्तक में ऐसी ही कई कहानियां अवतरित की गई हैं, जो नारी की महता पर प्रकाश डालती हैं। आशा करती हूं कि आप सब भी कहानियां पढ़ने के बाद पुस्तक के शीर्षक को भली भांति समझ पाओगे।

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