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Kavi Ka Marg: Kamalesh Se Samwad

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कमलेश अपनी पीढ़ी के सम्भवत सबसे पढ़े-लिखे कवि-चिन्तक थे। जितना ज्ञान उन्होंने संसार भर से अपने पास इकट्ठा किया था उसकी तुलना में उन्होंने लिखा कम। उनके पास ज्ञान-पगी दृष्टि थी जो उनकी मूलत कविदृष्टि को समृद्ध और विलक्षण बनाती थी। उनसे एक लम्बा संवाद और उनका एक निबन्ध इस पुस्तक में शामिल किया गया है जो इस माला के पहले सैट में इस विश्वास के साथ प्रकाशित की जा रही है कि उनके चिन्तन और गद्य की यह पुस्तक पाठकों को विचारोत्तेजक लगेगी। कमलेश में परम्परा की गहरी समझ और पैठ तथा आधुनिकता से प्रोत्साहित प्रश्नाकुलता में कोई दूरी नहीं है जो उन्हें एक अपवाद बनाती है।-अशोक वाजपेयीहिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि, विचारक, अनुवादक और राजनीतिकर्ता अब दिवंगत इनके तीन कविता संग्रह, 'जरत्कारु', 'खुले में आवास' और 'बसाव' प्रकाशित हुए हैं। कमलेश जी की कविताओं में भारतीय परम्परा की समृद्धि के दर्शन को अनेक आलोचकों ने रेखांकित किया है। इन्होंने पाब्लो नेरूदा की प्रसिद्ध कविता 'माचू पिच्चू के शिखर' समेत अनेक कविताओं के अनुवाद किये हैं। कमलेश जी ने साहित्य और इतिहास आदि अनेक अनुशासनों की पुस्तकों पर विस्तार से लिखा है। अपने निधन से पहले कमलेश जी भारत की जाति-व्यवस्था आदि अनेक संस्थाओं को औपनिवेशिक विचारों के कुहासे से बाहर निकालकर सम्यक आलोक में देखने का महती प्रयत्न कर रहे थे।

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  • Sprog:
  • Hindi
  • ISBN:
  • 9788126730926
  • Indbinding:
  • Hardback
  • Sideantal:
  • 144
  • Udgivet:
  • 1. januar 2018
  • Størrelse:
  • 140x13x216 mm.
  • Vægt:
  • 331 g.
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Beskrivelse af Kavi Ka Marg: Kamalesh Se Samwad

कमलेश अपनी पीढ़ी के सम्भवत सबसे पढ़े-लिखे कवि-चिन्तक थे। जितना ज्ञान उन्होंने संसार भर से अपने पास इकट्ठा किया था उसकी तुलना में उन्होंने लिखा कम। उनके पास ज्ञान-पगी दृष्टि थी जो उनकी मूलत कविदृष्टि को समृद्ध और विलक्षण बनाती थी। उनसे एक लम्बा संवाद और उनका एक निबन्ध इस पुस्तक में शामिल किया गया है जो इस माला के पहले सैट में इस विश्वास के साथ प्रकाशित की जा रही है कि उनके चिन्तन और गद्य की यह पुस्तक पाठकों को विचारोत्तेजक लगेगी। कमलेश में परम्परा की गहरी समझ और पैठ तथा आधुनिकता से प्रोत्साहित प्रश्नाकुलता में कोई दूरी नहीं है जो उन्हें एक अपवाद बनाती है।-अशोक वाजपेयीहिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि, विचारक, अनुवादक और राजनीतिकर्ता अब दिवंगत इनके तीन कविता संग्रह, 'जरत्कारु', 'खुले में आवास' और 'बसाव' प्रकाशित हुए हैं। कमलेश जी की कविताओं में भारतीय परम्परा की समृद्धि के दर्शन को अनेक आलोचकों ने रेखांकित किया है। इन्होंने पाब्लो नेरूदा की प्रसिद्ध कविता 'माचू पिच्चू के शिखर' समेत अनेक कविताओं के अनुवाद किये हैं। कमलेश जी ने साहित्य और इतिहास आदि अनेक अनुशासनों की पुस्तकों पर विस्तार से लिखा है। अपने निधन से पहले कमलेश जी भारत की जाति-व्यवस्था आदि अनेक संस्थाओं को औपनिवेशिक विचारों के कुहासे से बाहर निकालकर सम्यक आलोक में देखने का महती प्रयत्न कर रहे थे।

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